ऊंची दुकान - फीका पकवान
ऊंची दुकान - फीका पकवान - - दो शब्द
राजीव रावत
ऊंची ऊंची
इमारतों की तरह
हमारे ऊंचे ख्वाब हो गये हैं--
अब हम भी
कर्ज में डूब कर नबाव हो गये हैं--
हम
अर्थ तंत्र की दिखावट में ऐसा फंस गये हैं--
बस ऊपर और ऊपर उठने के चक्कर में
गले तक धंस गये हैं--
अब ऊंची ऊंची डिग्रियां लटका कर
दूध देने वाली जरसी काॅऊ(गाय) हो गया हूं--
हां यारो
आइ ए एस, आइ पी एस, डॉक्टर बन कर मैं बिखाऊ हो गया हूं--
आज तो ऊंचे उठने की लालच में
सारे अहसास और जज्बात
जब जिंदगी की चक्की में पिसते हैं--
ऊंचे ऊचें ख्बाबों की दुकानों पर
मोहब्बत के स्मारक लैला-मजनूं भी बिकते हैं--
मेहनतकश मजदूर
आज भी अपनी मेहनत का पसीना बहाते हैं--
और हम
उसी पसीने की धारा पर तैर करते हुए
समुद्रों को कोलंबस कहलाते हैं--
ये ऊंची ऊंची
ईमारतें ईमानदारी की खंबों पर खड़ी नहीं
होती हैं--
कभी गौर से सुनियेगा
इनकी नीवों की तलहटी में कितनों के कुचले अरमान और कितनी आत्मायें रोती हैं--
राजीव रावत
Bhartendra Sharma
21-Feb-2021 10:09 AM
बहुत उम्दा सृजन
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Raju Ladhroiea
21-Feb-2021 09:02 AM
बहुत बढ़िया रचना है साहेब
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Aliya khan
20-Feb-2021 09:49 PM
Bahut khoob
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